Aditya L1 Mission क्या है ? सूर्य का अध्ययन आवश्यक क्यों? जानें इसके बारे में सब कुछ

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानि इसरो ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक उतारकर दुनियाभर में अपनी क्षमताओं को लोहा मनवाया। अपने इसी उत्साह से उत्साहित होकर राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी ने आज यानी शनिवार को Aditya-L1 मिशन को लॉन्च किया। इस मिशन का उद्देश्य सूर्य के विषय में अधिकाधिक जानकारी इकठ्ठा करना है।

भारत के चंद्रयान-3 की जोरदार सफलता के बाद अब दुनिया भर के वैज्ञानिकों की निगाहें Aditya-L1 मिशन पर लगी हुई हैं। अब हम बात करते हैं कि आखिर Aditya-L1 क्या है? इस मिशन का अंतिम उद्देश्य क्या है? मिशन के प्रमुख घटक कौन-कौन से हैं? इसे कब और कहां से लॉन्च किया गया ? हमारे लिए सूर्य का अध्ययन क्यों आवश्यक है? आइए जानते हैं…

आइए सबसे पहले हम जानते हैं कि हमारा Aditya-L1 क्या है?

Aditya-L1 सूर्य की जानकारी प्राप्त करने वाला अनुठा मिशन है। इतना ही नहीं इसरो ने इस मिशन को पहला अंतरिक्ष आधारित वेधशाला श्रेणी का भारतीय सौर मिशन का नाम दिया है। Aditya-L1 यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंजियन बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित करने की योजना है जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किमी दूर है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि लैग्रेंजियन बिंदु वह विंदु है जहां दो वस्तुओं के बीच कार्य करने वाले सभी गुरुत्वाकर्षण बल एक-दूसरे को निष्प्रभावी कर देते हैं। इस वजह से एल1 बिंदु का उपयोग अंतरिक्ष यान के उड़ने के लिए किया जा सकता है।

Aditya-L1 मिशन का उद्देश्य क्या है ?

भारत का अब तक का सबसे महत्वाकांक्षी सौर मिशन आदित्य एल-1 सौर कोरोना जोकि सूर्य के वायुमंडल का सबसे बाहरी भाग है, की बनावट और इसके तपने की प्रक्रिया है। यह मिशन सूर्य के तापमान, सौर विस्फोट और सौर तूफान के कारण और उत्पत्ति, कोरोना और कोरोनल लूप प्लाज्मा की बनावट, वेग और घनत्व, कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र की माप, कोरोनल मास इजेक्शन (सूरज में होने वाले सबसे शक्तिशाली विस्फोट जो सीधे पृथ्वी की ओर आते हैं) की उत्पत्ति, विकास और गति, सौर हवाएं और अंतरिक्ष के मौसम को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन करेगा।

Aditya-L1 मिशन के सबसे महत्वपूर्ण घटक क्या-क्या हैं?

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आदित्य-एल1 मिशन सूर्य का व्यवस्थित अध्ययन करने के लिए सात वैज्ञानिक पेलोड का एक सेट लेकर गया है। विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ यानि वीईएलसी सूर्य के वायुमंडल के सबसे बाहरी भाग यानी सौर कोरोना और सूरज में होने वाले सबसे शक्तिशाली विस्फोटों यानी कोरोनल मास इजेक्शन की गतिशीलता के विषय में अधिक से अधिक जानकारी जुटायेगा।

सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर यानि कि SoLEXS और हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर मतलब HEL1OS विस्तृत एक्स-रे ऊर्जा रेंज में सूर्य से आने वाली एक्स-रे किरणों के बारे में विस्तृत अध्य यन करेंगे। वहीं, मैग्नेटोमीटर पेलोड को L1 बिंदु पर दो ग्रहों के बीच के चुंबकीय क्षेत्र को मापने के लिए बनाया गया है।

आदित्य-एल1 के सभी सातों विज्ञान पेलोड की महत्वपूर्ण बात यह है कि ये हमारे देश में स्थित विभिन्न प्रयोगशालाओं द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित किए गए हैं। ये सभी पेलोड इसरो के विभिन्न केंद्रों की सहायता से विकसित किए गए हैं।

आइए अब हम जानते हैं कि सूर्य का अध्ययन इतना आवश्यक क्यों?

यह बात तो हम सभी जानते हैं कि सूर्य हमारा सबसे करीबी तारा है और इसलिए अन्य तारों की तुलना में इसका सर्वाधिक विस्तार से अध्ययन किया जा सकता है। इसरो के अनुसार, सूर्य का अध्ययन के उपरान्त हम अपनी आकाशगंगा के तारों के साथ-साथ कई अन्य आकाशगंगाओं के तारों के विषय में भी बहुत कुछ जान सकते हैं। सूर्य एक अत्यंत गतिशील तारा है जो हम जो देखते हैं उससे कहीं अधिक फैला हुआ है। इसमें कई विस्फोटकारी घटनाएं होती हैं इसके साथ ही सौर मंडल में भारी मात्रा में ऊर्जा भी छोड़ता है।यदि इस प्रकार की कोई विस्फोटक सौर घटना पृथ्वी की तरफ आती है तब यह पृथ्वी के नजदीकी अंतरिक्ष वातावरण में कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न कर सकती है। कई अंतरिक्ष यान और संचार प्रणालियां ऐसी समस्याओं का शिकार बन चुकी हैं। लिहाजा पहले से ही सुधारात्मक उपाय करने के लिए ऐसी घटनाओं की प्रारंभिक चेतावनी अहम है।

इन सबके अलावा यदि कोई अंतरिक्ष यात्री सीधे ऐसी विस्फोटक घटनाओं के संपर्क में आता है तो वह खतरे में पड़ सकता है। यह बात तो हम सभी जानते हैं कि सूर्य पर कई तापीय और चुंबकीय घटनाएं घटती रहती हैं जो प्रचंड प्रकृति की होती हैं। इस प्रकार सूर्य उन घटनाओं को समझने के लिए एक अच्छी प्राकृतिक प्रयोगशाला भी प्रदान करता है जिनका सीधे प्रयोगशाला में अध्ययन नहीं किया जा सकता है।